Musli ka Samanya Parichay-
मूसली दो प्रकार की मिलती है ,सफेद और काली। आमतौर पर सफेद मूसली का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है ।सफेद मूसली मध्य प्रदेश ,गुजरात ,पंजाब ,हिमालय ,मुंबई आदि स्थानों पर पैदा होती है। इसका पौधा कांटेदार, मजबूत ,झुकी हुई शाखाओं से युक्त ,मटमैले रंग का नलीदार होता है ।इसका मुख्य तना गोल, चिकना ,मोटा और सीधा ऊंचाई तक जाता है ।कांटे मोटे ,सीधे और लगभग आधा इंच लंबे होते हैं। मुख्य तने से जड़ों का गुच्छा कंद के समान गोल गोल निकलता है। जिसके ऊपर की छाल को निकालकर सुखाया जाता है ।छाल झुर्रीदार,कठोर, आसानी से टूटने वाली ,कुछ मोटी ,कुछ मुड़ी, 2 से 3 इंच लंबी बिकने के लिए बाजार में भेजी जाती हैं ।यह स्वाद में मधुर और लुआबदार होती हैं ।
मूसली के विभिन्न भाषाओं में नाम-
संस्कृत में मुसली को श्वेत मूसली ,हिंदी में सफेद मूसली ,मराठी में पांढरी मुसली, गुजराती में धोली मूसली ,बंगाली में ताल मूली ,अंग्रेजी में वाइट मूसली(white mosel) इत्यादि कहा जाता है।
मूसली के गुण-
आयुर्वेद के अनुसार-
सफेद मूसली रस में मधुर,तिक्त,गुण मे भारी ,स्निग्ध ,गर्म प्रकृति की ,विपाक में मधुर, वीर्यवर्धक, बलवर्धक ,,स्नायविक संस्थान को बल देने वाली ,स्तंभक ,वातपित्त रोग नाशक होती है ।यह बवासीर, पेशाब में जलन ,पेट दर्द ,शारीरिक कमजोरी, बहुमूत्र, शीघ्रपतन ,नपुंसकता ,घावशोधन में गुणकारी है ।वैज्ञानिक मतानुसार सफेद मूसली की रासायनिक संरचना का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि इसमें एसपेरेगिन एल्ब्युमिन युक्त पदार्थ ,सेल्यूलोज और पिच्छिल द्रव्य होते हैं ।जबकि काली मूसली में स्टार्च 43.48%, रेशा 14.18%, राख 8.6%और टैनिन 4.15%होता है ।यद्यपि दोनों प्रकार की मूसली के गुणों में काफी समानता होती है ,लेकिन मूत्र विकार और यौन विकारों में काली मूसली अधिक गुणकारी मानी जाती है।
Also read about some other useful natural herbs
Janiye Aloevera ke aushdhiya gun ke bare me
Giloy ke aushdhiya gun aur upyog
Ashwagandha ,a powerful remedy of ayurved
विभिन्न रोगों में मूसली के प्रयोग-
पेट दर्द मे Safed musli aur dalchini समभाग में मिलाकर प्रयोग किया जाता है ।
पेशाब में जलन, गुर्दे में दर्द ,दमाआदि रोगों मे भी इसका उपयोग किया जाता है।
शारीरिक शक्ति, ,मैथुन शक्ति, वीर्यवर्धन, नपुंसकता, शीघ्रपतन, धातु क्षीणता, दुबलापन दूर करने हेतु बहुमुत्र घाव पर प्रयोग करने हेतु सफेद मूसली को मुलेठी ,अश्वगंधा, शतावरी , कौंच और मिश्री समभाग मिलाकर पीस लें दो चम्मच की मात्रा में दूध के साथ रोजाना सुबह-शाम सेवन करते रहने से कुछ ही सप्ताह में पूर्ण रुप से लाभ मिल जाता है यह इन रोगों की एक विशिष्ट औषधि है।
आज के अंक में बस इतना ही अन्य जानकारी हेतु आगे का अंक देखें
मूसली दो प्रकार की मिलती है ,सफेद और काली। आमतौर पर सफेद मूसली का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है ।सफेद मूसली मध्य प्रदेश ,गुजरात ,पंजाब ,हिमालय ,मुंबई आदि स्थानों पर पैदा होती है। इसका पौधा कांटेदार, मजबूत ,झुकी हुई शाखाओं से युक्त ,मटमैले रंग का नलीदार होता है ।इसका मुख्य तना गोल, चिकना ,मोटा और सीधा ऊंचाई तक जाता है ।कांटे मोटे ,सीधे और लगभग आधा इंच लंबे होते हैं। मुख्य तने से जड़ों का गुच्छा कंद के समान गोल गोल निकलता है। जिसके ऊपर की छाल को निकालकर सुखाया जाता है ।छाल झुर्रीदार,कठोर, आसानी से टूटने वाली ,कुछ मोटी ,कुछ मुड़ी, 2 से 3 इंच लंबी बिकने के लिए बाजार में भेजी जाती हैं ।यह स्वाद में मधुर और लुआबदार होती हैं ।
मूसली के विभिन्न भाषाओं में नाम-
संस्कृत में मुसली को श्वेत मूसली ,हिंदी में सफेद मूसली ,मराठी में पांढरी मुसली, गुजराती में धोली मूसली ,बंगाली में ताल मूली ,अंग्रेजी में वाइट मूसली(white mosel) इत्यादि कहा जाता है।
मूसली के गुण-
आयुर्वेद के अनुसार-
सफेद मूसली रस में मधुर,तिक्त,गुण मे भारी ,स्निग्ध ,गर्म प्रकृति की ,विपाक में मधुर, वीर्यवर्धक, बलवर्धक ,,स्नायविक संस्थान को बल देने वाली ,स्तंभक ,वातपित्त रोग नाशक होती है ।यह बवासीर, पेशाब में जलन ,पेट दर्द ,शारीरिक कमजोरी, बहुमूत्र, शीघ्रपतन ,नपुंसकता ,घावशोधन में गुणकारी है ।वैज्ञानिक मतानुसार सफेद मूसली की रासायनिक संरचना का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि इसमें एसपेरेगिन एल्ब्युमिन युक्त पदार्थ ,सेल्यूलोज और पिच्छिल द्रव्य होते हैं ।जबकि काली मूसली में स्टार्च 43.48%, रेशा 14.18%, राख 8.6%और टैनिन 4.15%होता है ।यद्यपि दोनों प्रकार की मूसली के गुणों में काफी समानता होती है ,लेकिन मूत्र विकार और यौन विकारों में काली मूसली अधिक गुणकारी मानी जाती है।
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विभिन्न रोगों में मूसली के प्रयोग-
पेट दर्द मे Safed musli aur dalchini समभाग में मिलाकर प्रयोग किया जाता है ।
पेशाब में जलन, गुर्दे में दर्द ,दमाआदि रोगों मे भी इसका उपयोग किया जाता है।
शारीरिक शक्ति, ,मैथुन शक्ति, वीर्यवर्धन, नपुंसकता, शीघ्रपतन, धातु क्षीणता, दुबलापन दूर करने हेतु बहुमुत्र घाव पर प्रयोग करने हेतु सफेद मूसली को मुलेठी ,अश्वगंधा, शतावरी , कौंच और मिश्री समभाग मिलाकर पीस लें दो चम्मच की मात्रा में दूध के साथ रोजाना सुबह-शाम सेवन करते रहने से कुछ ही सप्ताह में पूर्ण रुप से लाभ मिल जाता है यह इन रोगों की एक विशिष्ट औषधि है।
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