भाषा की उपयोगिता हमारे देश भारत की सबसे बड़ी खोज भाषा के बारे में है, भाषा मनुष्य के लिए साधन नहीं है भाषा एक माध्यम है जिसमें मनुष्य के मस्तिष्क की तरंगे उठती हैं मनुष्य चाहे या ना चाहे उसकी बोली या मन के चिंतन के रूप में भाषा निश्चित होती ही रहती है भाषा का व्यवहार करते हुए मनुष्य को लगता अवश्य है कि वह भाषा का स्वतंत्र रूप से प्रयोग कर रहा है लेकिन वह इस कारण है कि व्यक्ति के रूप में उसकी चेतना भाषा के माध्यम में ही अपने आप को पहचानती है ।भाषा से घिरा रहने वाला व्यक्ति मान लेता है और लोग जो बात कर रहे हैं उसे वह वैसा ही समझ रहा है वह कह रहा है उसे वैसा ही समझ गए हैं यह बहुत बड़ा भ्रम है यह भाषिक व्यवहार केवल सामान्य समझ के स्तर पर होता है जिसके सहारे दुनिया चलती है स्तर पर शब्दों के निश्चित अर्थ निर्धारित करने का प्रयास नहीं किया जाता परिणाम इसमें अपने विचारों को छिपाने और दूसरों को धोखा देने की पूरी संभावना रहती है हमारे राजनेताओं, धार्मिकगुरू जो बात करते हैं वह सच्चाई से बहुत दूर होती है।
अवसर और सफलता क्या है
चिंतन करना मनुष्य के लिए बहुत स्वाभाविक है पर उसके साथ ही चिंतन की सीमा को समझना भी आवश्यक है हमें विचारों को स्पष्ट रूप से कहना आना चाहिए और अपने जीवन को समझने और उसे सही दिशा में ले जाने के लिए हमें भाषा और अपने चिंतन की प्रकृति को जानना चाहिए भाषा के विषय में संस्कार छोटी अवस्था से ही देना आवश्यक है । भाषा सामाजिक संपदा है। मानव जाति के इतिहास की प्राचीनतम उपलब्धि भाषा मनुष्य ने गढी है ।वाणी प्कृति की देन है। भाषा का सतत विकास हुआ है। ऋग्वेद के अनुसार भाषा बुद्धि से शुद्ध की जाती है। यह नदी के समान प्रवाहमान रहती है।
दुनिया के सारे समाज भाषा में ही गढे हैं। सारा ज्ञान विज्ञान और दर्शन भाषा के कारण सार्वजनिक संपदा बनता है ।भारत में वैदिक काल से ही भाषा को मधुर बनाने के प्रयास हुए ।शब्द मधुरता की अभिलाषा अथर्ववेद में है। हमारी जिह्वा का अग्रभाग मधुरहो। मूल भाग मधुर हो।हम तेजस्वी वाणी भी मधुरता के साथ कहे।
वाणी मधुर हो। वैदिक साहित्य के भीतर मंत्रो के छोटे समूहों को इस सूक्त कहा गया है ।सूक्त का अर्थ है सू, उक्त अर्थात सुंदर कथन।
जैसे वैदिक साहित्य में सूक्त हैं वैसे ही परिवर्ती साहित्य में शक्तियां हैं। शक्तियां सुंदर उक्तियां हैं ।लेकिन मौजूदा दौडर ने भाषा वाणी में विष घोल दिया है ।कुछ सचेत मन द्वारा सजग रूप में और कुछ अचेतन द्वारा अंधानुकरण करते हुए ।
फेसबुक ट्विटर आदि ने विचार अभिव्यक्ति का सुंदर मंच दिया है। इसमें कवियों के लिए कविता की जगह है ,Facebook में जारी कविता दूर तक जाती है । यह विचार संप्रेषण के सुंदर अवसर हैं ,लेकिन वहुधा ऐसे मंच का दुरूपयोग अपशब्दों के लिए हो रहा है। गुस्सा है तो गुस्सा और भड़ास ।
गाली का मन है तो गाली। मूलभूत प्रश्न है कि आधुनिक टेक्नोलॉजी द्वारा उपलब्ध अवसरों का सदुपयोग सत्य शिव और सुंदर के लिए क्यों नहीं हो सकता ।
परम आनंद कैसे प्राप्त करें
क्या हम भारत के लोग तकनीक के सदुपयोग करने के लिए तैयार हैं । आखिर क्यों अक्षम हैं हम सब। शब्द की बड़ी शक्ति है यह दूर तक असर करता है ।ऋग्वेद में वाणी देवता है ।वाणी विश्व धारण करती है। उत्तर वैदिक काल में शतपक्ष ब्राहमण के रचनाकार ने वाणी को विराट कहा था।
यजुर्वेद में भाषा को विश्वकर्मा बताया गया है ।भाषा जीवन का प्रवाह है । मधु आपूरित शब्द जीवन को मधुमय बनाते हैं । अप्रिय शब्द जीवन में विष घोलते हैं ।
आज के लिए बस इतना
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चिंतन करना मनुष्य के लिए बहुत स्वाभाविक है पर उसके साथ ही चिंतन की सीमा को समझना भी आवश्यक है हमें विचारों को स्पष्ट रूप से कहना आना चाहिए और अपने जीवन को समझने और उसे सही दिशा में ले जाने के लिए हमें भाषा और अपने चिंतन की प्रकृति को जानना चाहिए भाषा के विषय में संस्कार छोटी अवस्था से ही देना आवश्यक है । भाषा सामाजिक संपदा है। मानव जाति के इतिहास की प्राचीनतम उपलब्धि भाषा मनुष्य ने गढी है ।वाणी प्कृति की देन है। भाषा का सतत विकास हुआ है। ऋग्वेद के अनुसार भाषा बुद्धि से शुद्ध की जाती है। यह नदी के समान प्रवाहमान रहती है।
दुनिया के सारे समाज भाषा में ही गढे हैं। सारा ज्ञान विज्ञान और दर्शन भाषा के कारण सार्वजनिक संपदा बनता है ।भारत में वैदिक काल से ही भाषा को मधुर बनाने के प्रयास हुए ।शब्द मधुरता की अभिलाषा अथर्ववेद में है। हमारी जिह्वा का अग्रभाग मधुरहो। मूल भाग मधुर हो।हम तेजस्वी वाणी भी मधुरता के साथ कहे।
वाणी मधुर हो। वैदिक साहित्य के भीतर मंत्रो के छोटे समूहों को इस सूक्त कहा गया है ।सूक्त का अर्थ है सू, उक्त अर्थात सुंदर कथन।
जैसे वैदिक साहित्य में सूक्त हैं वैसे ही परिवर्ती साहित्य में शक्तियां हैं। शक्तियां सुंदर उक्तियां हैं ।लेकिन मौजूदा दौडर ने भाषा वाणी में विष घोल दिया है ।कुछ सचेत मन द्वारा सजग रूप में और कुछ अचेतन द्वारा अंधानुकरण करते हुए ।
फेसबुक ट्विटर आदि ने विचार अभिव्यक्ति का सुंदर मंच दिया है। इसमें कवियों के लिए कविता की जगह है ,Facebook में जारी कविता दूर तक जाती है । यह विचार संप्रेषण के सुंदर अवसर हैं ,लेकिन वहुधा ऐसे मंच का दुरूपयोग अपशब्दों के लिए हो रहा है। गुस्सा है तो गुस्सा और भड़ास ।
गाली का मन है तो गाली। मूलभूत प्रश्न है कि आधुनिक टेक्नोलॉजी द्वारा उपलब्ध अवसरों का सदुपयोग सत्य शिव और सुंदर के लिए क्यों नहीं हो सकता ।
परम आनंद कैसे प्राप्त करें
क्या हम भारत के लोग तकनीक के सदुपयोग करने के लिए तैयार हैं । आखिर क्यों अक्षम हैं हम सब। शब्द की बड़ी शक्ति है यह दूर तक असर करता है ।ऋग्वेद में वाणी देवता है ।वाणी विश्व धारण करती है। उत्तर वैदिक काल में शतपक्ष ब्राहमण के रचनाकार ने वाणी को विराट कहा था।
यजुर्वेद में भाषा को विश्वकर्मा बताया गया है ।भाषा जीवन का प्रवाह है । मधु आपूरित शब्द जीवन को मधुमय बनाते हैं । अप्रिय शब्द जीवन में विष घोलते हैं ।
आज के लिए बस इतना